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ग़ज़ल
गुज़ारे हिज्र में बरसों ही वस्ल-ए-यार के बाद
उठाया जब्र बहुत हम ने इख़्तियार के बाद
नवाब उमराव बहादूर दिलेर
ग़ज़ल
ख़ुसरव-ए-ऐश-ए-वस्ल-ए-यार जाँ-कनी और कोहकन
अपना जिगर तो ख़ूँ हुआ इश्क़ के इम्तियाज़ में
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कुछ ज़िक्र-ए-यार जिस में था कुछ ज़िक्र-ए-वस्ल-ए-यार
तदवीन-ए-ज़िंदगी में वही बाब रह गया
अंजुम ख़लीक़
ग़ज़ल
सोज़ाँ है दाग़-ए-हिज्र मिरे दिल में मिस्ल-ए-शम्अ
ऐ याद-ए-वस्ल-ए-यार बुझा दे उन्हों के तईं