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ग़ज़ल
बात ये है कि सुकून-ए-दिल-ए-वहशी का मक़ाम
कुंज-ए-ज़िंदाँ भी नहीं वुसअ'त-ए-सहरा भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ये मुश्त-ए-ख़ाक ये सरसर ये वुसअ'त-ए-अफ़्लाक
करम है या कि सितम तेरी लज़्ज़त-ए-ईजाद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं नीम-शब आसमाँ की वुसअ'त को देखता था
ज़मीं पे वो हुस्न-ज़ार उतरा तो मैं ने देखा
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
वो दिल से कम ज़बाँ ही से ज़ियादा बात करता था
जभी उस के यहाँ गहराई कम वुसअ'त ज़ियादा थी