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ग़ज़ल
दिल के सहरा से फिर गुज़रा क़ाफ़िला उन की यादों का
कैसे कैसे जश्न मनाए आज मिरी तन्हाई ने
ग़ुलाम रब्बानी नईम
ग़ज़ल
शहर की वीराँ सड़क पर जश्न-ए-ग़म करते हुए
जा रहा हूँ ख़ुश्की-ए-मिज़्गाँ को नम करते हुए
अमरदीप सिंह
ग़ज़ल
नींद आ गई थी मंज़िल-ए-इरफ़ाँ से गुज़र के
चौंके हैं हम अब सरहद-ए-इसयाँ से गुज़र के
अली जवाद ज़ैदी
ग़ज़ल
मीनारों से ऊपर निकला दीवारों से पार हुआ
हद्द-ए-फ़लक छूने की धुन में इक ज़र्रा कोहसार हुआ
शाहिद मीर
ग़ज़ल
सूफ़िया अनजुम ताज
ग़ज़ल
जल्सा-ए-ग़म की तय्यारी में उधर हैं जीते जी मसरूफ़
पैदाइश का जश्न मनाया यारों ने हर साल उधर