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ग़ज़ल
तुम्हारी जेब भी ख़ाली तुम्हारे दिल की तरह
तुम्हें भी फ़ुर्सत-ए-यक-बारगी ने कुछ न दिया
शाइस्ता सहर
ग़ज़ल
वो पर्दे से निकल कर सामने जब बे-हिजाब आया
जहान-ए-इश्क़ में यक-बारगी इक इंक़लाब आया
अनवर सहारनपुरी
ग़ज़ल
ले गई दिल को किसी की इक निगाह-ए-अव्वलीं
मैं किसी के हुस्न पर यक-बारगी शैदा हुआ