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ग़ज़ल
ऐ ख़्वाहिश-ए-यक-तरफ़ा-ए-ताराज-ए-जुनूँ सुन
सुन दिल के क़रीं ज़मज़मा-ए-कुन-फ़यकूँ सुन
शाइस्ता सहर
ग़ज़ल
दरिया की मसाफ़त ने ज़मीं का नहीं छोड़ा
यक-तरफ़ा मोहब्बत ने कहीं का नहीं छोड़ा
शाहिदा दिलावर शाह
ग़ज़ल
किसी की बात सुनना भी ज़रूरी है तफ़ावुत में
कि यक-तरफ़ा कोई भी फ़ैसला अच्छा नहीं होता
लतीफ़ साहिल
ग़ज़ल
अपनी ही लाश पे हैं अश्क बहाए हुए लोग
हम हैं यक-तरफ़ा मोहब्बत के सताए हुए लोग