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ग़ज़ल
विसाल-ओ-हिज्र अब यकसाँ हैं वो मंज़िल है चाहत में
मैं आँखें बंद कर के तुझ को अक्सर देख सकती हूँ
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
यकसाँ है हुस्न-ओ-इश्क़ की सर-मस्तियों का रंग
उन की ख़बर उन्हें है न मेरी ख़बर मुझे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
किसे आबाद समझूँ किस का शहर-आशोब लिक्खूँ मैं
जहाँ शहरों की यकसाँ सूरत-ए-हालात होती है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
सब को मालूम है ता'बीर तो यकसाँ होगी
ख़्वाब ही देख लें हट कर कि वबा के दिन हैं
अक़ील अब्बास जाफ़री
ग़ज़ल
को गुल-ओ-लाला कहाँ सुम्बुल समन हम-नस्तरन
ख़ाक से यकसाँ हुए हैं हाए क्या क्या आश्ना
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
बुत-ख़ाना-ओ-का'बा में यकसाँ है तिरा जल्वा
का'बा तो हुआ का'बा बुत-ख़ाने को क्या कहिए