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ग़ज़ल
यूसुफ़-ए-मिस्र का ख़ालिक़ भी मिलेगा तुझ को
ख़ुद में पैदा ज़रा अंदाज़-ए-ज़ुलेख़ाई कर
शादाब जावेद
ग़ज़ल
यूसुफ़-ए-मिस्र-ए-मोहब्बत कैसा अर्ज़ां बिक गया
नक़्द-ए-दिल क़ीमत हुई इक बोसा बैआ'ना हुआ
रिन्द लखनवी
ग़ज़ल
यूसुफ़-ए-मिस्र से मगर मिलते हैं सब तिरे निशाँ
ज़ुल्फ़ से ज़ुल्फ़ लब से लब चश्म से चश्म तिल से तिल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
थे ब-फ़ैज़-ए-इश्क़ हम भी यूसुफ़-ए-बाज़ार-ए-मिस्र
लौट कर जाते कहाँ शहर-ए-ज़ुलेख़ा देख कर
नसीम शामाइल पूरी
ग़ज़ल
यूसुफ़ अज़ीज़-ए-मिस्र थे हासिल थी सल्तनत
इस जाह पर भी चाह थी अपने दयार की
मोहम्मद इब्राहीम आजिज़
ग़ज़ल
यूसुफ़ अज़ीज़-ए-मिस्र थे हासिल थी सल्तनत
इस जाह पर भी चाह थी अपने दयार की
मोहम्मद इब्राहीम आजिज़
ग़ज़ल
तेरा वो हुस्न है कि जो होता तो भेजता
यूसुफ़ ज़मीन-ए-मिस्र से तुझ को ख़िराज आज
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
देख ऐ चश्म-ए-ज़ुलेख़ा क़द्र अपने प्यार की
आज फिर यूसुफ़ के भाई हैं ख़रीदारों के साथ
यूसुफ़ ज़फ़र
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
गुनाह क्या है जो दिल से अज़ीज़ रखते हैं
बने हो यूसुफ़-ए-सानी तो चाह करते हैं