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ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
'अश्क' अपने सीना-ए-पुर-ख़ूँ में सैल-ए-अश्क भी
रोक रखता हूँ जिगर के ख़ून की तहलील तक
अश्क अमृतसरी
ग़ज़ल
दो बोल दिल के हैं जो हर इक दिल को छू सकें
ऐ 'अश्क' वर्ना शेर हैं क्या शाइरी है क्या
इब्राहीम अश्क
ग़ज़ल
काग़ज़-ए-अब्री पे लिख हाल-ए-दिल-ए-पुर-सोज़-ए-इश्क़
गिर्द उस के बर्क़ की तहरीर खींचा चाहिए
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
'अश्क' उसूल-ए-कस्ब-ए-ज़र से तू नहीं है आश्ना
तिश्ना-ए-तकमील है तेरी हमा-दानी हनूज़
अश्क अमृतसरी
ग़ज़ल
नाला है ख़ाना-ज़ाद-ए-इश्क़ लेक कहाँ सर-ओ-दिमाग़
अपने तो क़ाफ़िले के बीच जो है जरस ख़मोश है
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
तरद्दुद में है मेरे ज़ब्ह के ऐ 'इश्क़' वो अब तक
निगाह-ए-नाज़ से बिस्मिल हुआ जल्लाद क्या जाने
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
झुका कर एक मैं सर नाम अपना कर दिया रौशन
फ़ुनून-ए-इश्क़ में कम कोई परवाना सा पक्का है
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
चल 'यक़ीं' की बात पर ऐ 'इश्क़' हम भी जल मरें
क्या ही फूला है पिलास और लग रही है बन को आग
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
है किस के ज़ुल्फ़ का सौदा तुझे ऐ इश्क़ बतला दे
हमेशा इत्र-ए-अम्बर की सी बू आती है तुझ ख़ू में
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
ख़बर हुई किसी मदहोश-ए-ऐश को न ज़रा
हमारी बज़्म-ए-तमन्ना तमाम रात लुटी