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ग़ज़ल
ख़लिश-ए-ज़ख़्म-ए-तमन्ना का मुदावा भी न था
मैं ने वो चाहा जो तक़दीर में लिक्खा भी न था
ताहिर तिलहरी
ग़ज़ल
दिल के हर ज़ख़्म-ए-तमन्ना की क़बा जलती है
ग़म का वो जोश-ए-नुमू है कि फ़ज़ा जलती है
मुतरिब बलियावी
ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-ज़ख़्म-ए-तमन्ना से हूँ सरगर्म-ए-सफ़र
वर्ना कब मंज़ूर थी ये जादा-पैमाई मुझे
एहसान नानपर्वी
ग़ज़ल
अजब है हाल-ए-दिल-ए-ज़ार किस ज़बाँ से कहूँ
इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-तमन्ना तिरी अदा भी नहीं
एहसान नानपर्वी
ग़ज़ल
कभी तो यूँ भी उमँडते सरिश्क-ए-ग़म 'मजरूह'
कि मेरे ज़ख़्म-ए-तमन्ना के दाग़ धो देते