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ग़ज़ल
वा नहीं होता किसू से दिल गिरफ़्ता इश्क़ का
ज़ाहिरन ग़मगीं उसे रहना ख़ुश आया है बहुत
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया
ज़ाहिरन काग़ज़ तिरे ख़त का गलत-बर-दार है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ज़ाहिरन ये बुत तो हैं नाज़ुक गुल-ए-तर की तरह
दिल मगर होता है कम-बख़्तों का पत्थर की तरह
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
बातिन-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर में ही बसा ले मुझ को
ज़ाहिरन गर तू मिरे साथ नहीं हो सकती
मोहम्मद असकरी आरिफ़
ग़ज़ल
ज़ाहिरन हम दोनों उस की जान के दुश्मन हुए
वो जो रिश्ता तेरे मेरे दरमियाँ चीख़ा किया
ज़ोहेब फ़ारूक़ी अफ़रंग
ग़ज़ल
चार कलियों के सहारे है गुलिस्ताँ का क़याम
ज़ाहिरन जो गुल हैं वर्ना ख़ार हैं ए'जाज़ के
गुलज़ार देहलवी
ग़ज़ल
अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ
ग़ज़ल
क़ब्ल-अज़-रुस्वाई इस अहक़र से कर लेते सवाल
ज़ाहिरन तो सख़्त हूँ लेकिन मैं पत्थर-दिल नहीं
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
ज़ाहिरन शाद हूँ फ़रहाँ हूँ हमेशा की तरह
बातिनन ज़ार-ओ-परेशाँ हूँ हमेशा की तरह