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ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
कोह-शिगाफ़ तेरी ज़र्ब तुझ से कुशाद-ए-शर्क़-ओ-ग़र्ब
तेग़-ए-हिलाल की तरह ऐश-ए-नियाम से गुज़र
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जो चेहरा देखा वो तोड़ा नगर नगर वीरान किए
पहले औरों से ना-ख़ुश थे अब ख़ुद से बे-ज़ारी है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
दिल-ए-संगीन-ए-ख़ुसरव पर भी ज़र्ब ऐ कोहकन पहुँची
अगर तेशा सर-ए-कोहसार पर मारा तो क्या मारा