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ग़ज़ल
हर ज़बरदस्त का हर ज़ुल्म सहा है मैं ने
ज़िंदगी महज़ तिरी हिर्स-ए-बक़ा की ख़ातिर
जलील हैदर लाशारी
ग़ज़ल
ज़बरदस्ती तो देखो हाथ रख कर मेरे सीने पर
वो किस दा'वे से कहते हैं हमारा ही तो ये दिल है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
कसी माशूक़ की कोई ख़ता मैं ने नहीं की है
सताने को ज़बर्दस्ती सताए जिस का जी चाहे