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ग़ज़ल
जब रग-ओ-पै में सरायत कर रहा था ज़हर-ए-हब्स
रौज़न-ए-दीवार से मुझ पर हँसी ठंडी हवा
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
कुश्ता-ए-ज़हर-ए-ग़म-ए-हिज्र नहीं तू तो 'हसन'
लख़्त-ए-दिल क्यूँ तिरे अश्कों में हरे आते हैं
मीर हसन
ग़ज़ल
ज़हर-ए-तन्हाई-ए-ग़म पी के मोहब्बत में 'ख़याल'
किस तरह मौत को जीने का सहारा कहिए
फ़ैज़ुल हसन ख़्याल
ग़ज़ल
मैं ज़हर-ए-इश्क़-ए-ज़ुल्फ़ से 'शैदा' बचूँगा क्या
मुझ को ये साँप काट के यकसर पलट गया
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है
ग़र्क़ कुफ़्र ओ ईमाँ हैं दौर-ए-मय-परस्ती है
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मुझे क्या ख़ौफ़ हस्ती की किसी भी ज़हर-नाकी का
कि ज़ह्र-ए-हिज्र-ए-जानाँ तक गवारा कर लिया मैं ने