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ग़ज़ल
हुजरा-ए-ज़ात में या महफ़िल-ए-याराँ में रहूँ
फ़िक्र दुनिया की मुझे हो भी तो कम हो आमीन
रहमान फ़ारिस
ग़ज़ल
कई गुज़िश्ता ज़माने कई शिकस्ता नुजूम
जो दस्तरस में हैं लफ़्ज़ों में कैसे ज़म किए जाएँ
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
बदन उधेड़ेगी बिस्मिल का ज़िंदगी पहले
सुना है ख़ाक में आख़िर वो ज़म करेगी मुझे