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ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ के हल्क़े में उलझा सब्ज़ा गोश-ए-यार का
हो गया संग-ए-ज़मुर्रद ख़ाल चश्म-ए-मार का
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
उँगलियों में रौशनी देते ज़मुर्रद के चराग़
मरमरीं बाज़ू का हल्क़ा सुर्ख़ याक़ूती हिसार
अहमद जहाँगीर
ग़ज़ल
नालों से ये कहता हूँ हिम्मत से न दिल हारें
तारों ने जगह कर ली इस लौह-ए-ज़मुर्रद में
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
बर्ग-ए-सरसब्ज़ की शाख़ों में ज़मुर्रद थे जड़े
दस्त-ए-कोताह था मैं मुझ से परे थे पत्ते
मंज़र शहाब
ग़ज़ल
तना याक़ूत का शाख़ें ज़मुर्रद की बनी थीं
समर लाल-ओ-गुहर थे नख़्ल का साया नहीं था
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये
समझ में लाल की अब तक हिना नहीं आई
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
ग़ज़ल
हम ने भी ख़ुद को 'तबस्सुम' अब ज़मुर्रद कर लिया
सुन रहे हैं हर तरफ़ ही भेस बदले साँप हैं
तबस्सुम आज़मी
ग़ज़ल
मैं ये जानते हुए भी, तिरी अंजुमन में आया
कि तुझे मिरी ज़रूरत कभी थी न है न होगी