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ग़ज़ल
भली लगती है आँखों को नए फूलों की रंगत भी
पुराने ज़मज़मे भी गूँजते रहते हैं कानों में
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
वज्द में लाते हैं मुझ को बुलबुलों के ज़मज़मे
आप के नज़दीक बा-मअ'नी सदा हो या न हो
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
'आज़ाद' साज़-ए-दिल पे हैं रक़्साँ वो ज़मज़मे
ख़ुद सुन सकूँ मगर न किसी को सुना सकूँ
जगन्नाथ आज़ाद
ग़ज़ल
ज़मज़मे सुन कर मिरे सय्याद-ए-गुल-रू ने कहा
ज़ब्ह कीजे ऐसे बुलबुल को न छोड़ा चाहिए
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
आप के नारों में ललकारों में कैसे आएँगे
ज़मज़मे जो अन-कही इक प्यार की बोली में थे
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
जिन में न जोश हो 'ज़फ़र' वो मिरे ज़मज़मे नहीं
दिल से जो खेलती उठे उस को मिरी नवा समझ
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
सलाम नज्मी
ग़ज़ल
टुक सुनियो ज़मज़मे मिरे दिल के कि बाग़ में
कब इस तरह का मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ है दूसरा