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ग़ज़ल
हंगाम-ए-शब-ओ-रोज़ में उलझा हुआ क्यूँ हूँ
दरिया हूँ तो फिर राह में ठहरा हुआ क्यूँ हूँ
अशफ़ाक़ हुसैन
ग़ज़ल
मैं उस को सोचूँ शब-ओ-रोज़ बंदगी की तरह
हैं उस की यादें दिल-ए-ज़ार पर नमी की तरह