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ग़ज़ल
तर्क ख़्वाहिश-ए-ज़र कर कीमिया-गरी ये है
दिल में रख ख़याल-ए-दोस्त शीशा-ओ-परी ये है
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
शाख़ें हैं वाँ आरास्ता और गुल हैं वाँ नौ-ख़ास्ता
प्याले हैं जिन के मध-भरे और पैरहन ज़र-कार हैं