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ग़ज़ल
टूटा जो वो तो शाम-ए-शफ़क़-ज़ाद ख़त्म थी
साँसों में फूल खिलने की मीआ'द ख़त्म थी
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
ये तारीकी में अंधी नफ़रतें किस सम्त बहती हैं
ज़र-ए-इख़्लास की शम'एँ जला कर देख लेता हूँ
रज़ा वसफ़ी
ग़ज़ल
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
ग़ज़ल
इश्क़ की दुनिया में क्या क्या हम को सौग़ातें मिलीं
सूनी सुब्हें रोती शामें जागती रातें मिलीं
करम हैदराबादी
ग़ज़ल
है क्यूँ नक़्ल-ए-मकानी ये हवा-ए-ताज़ा-तर क्या है
समझ में कुछ नहीं आता इधर क्या है उधर क्या है
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
ज़मीं से ख़त्म परिंदों की बे-घरी करेंगे
कि ज़र्द शाख़ें हैं जितनी हरी-भरी करेंगे