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ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
तुम्हारा ज़र्फ़ है तुम को मोहब्बत भूल जाती है
हमें तो जिस ने हँस कर भी पुकारा याद रहता है
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
हम ने चुप रहने का अहद किया है और कम-ज़र्फ़
हम से सुख़न-आराओं जैसी बातें करते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
किसी कम-ज़र्फ़ को बा-ज़र्फ़ अगर कहना पड़े
ऐसे जीने से तो मर जाने को जी चाहता है
कफ़ील आज़र अमरोहवी
ग़ज़ल
मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूटा है
कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
साक़िया तू ने मिरे ज़र्फ़ को समझा क्या है
ज़हर पी लूँगा तिरे हाथ से सहबा क्या है
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कम-ज़र्फ़ पुर-ग़ुरूर ज़रा अपना ज़र्फ़ देख
मानिंद जोश-ए-ग़म न ज़ियादा उबल के चल