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ग़ज़ल
औरों के लिए जो भी हो इश्क़ की तक़दीरें
पर मैं ने तो इस के ज़रिये अपना ख़ुदा देखा
अनमोल सावरण कातिब
ग़ज़ल
ख़त लिखो या फ़ोन के ज़रीये पता लेते रहो
वर्ना मैं थोड़े दिनों में लापता हो जाऊँगा
सुबोध लाल साक़ी
ग़ज़ल
अहल-ए-महफ़िल को सुनाता हूँ मज़ामीन-ए-बहार
तब-ए-रंगीं के ज़रीये फूल बरसाता हूँ मैं
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
रेत के ज़रिए हमारी मंज़िलें और उन की हम
पस यहाँ सम्त-ए-सफ़र का जानना बे-कार है
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
दवा से तेरी नहीं फ़ाएदा हुआ कुछ भी
दु'आ के ज़रिए ही देगा शिफ़ा ख़ुदा मुझ को
ताज मुहम्मद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अधूरे अल्फ़ाज़ के ज़रीये वफ़ा का इज़हार है क़यामत
कि जादू शर्म और हिचकिचाहट सा याँ रवानी न कर सकेगी