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ग़ज़ल
सर-ए-नियाज़ झुका है ज़े-राह-ए-ज़ौक़-ए-सुजूद
तिरे करम की क़सम कोई मुद्दआ तो नहीं
सय्यद आशूर काज़मी
ग़ज़ल
ये रंग-ओ-निकहत-ओ-तरकीब-ओ-लफ़्ज़ ख़ीरा-सरी
ज़े-राह-ए-दीदा ब-दिल-मौज-ए-ख़ूँ-रवाँ भी हो
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
हुए अब हम से तुम गर दुश्मन-ए-जानी तो बेहतर है
मियाँ ग़ैरों से मिल कर दिल में यूँ ठानी तो बेहतर है
फ़ख़रुद्दीन ख़ाँ माहिर
ग़ज़ल
दुनिया में कोई दिल का ख़रीदार न पाया
सब देखे दिल-आज़ार ही दिलदार न पाया
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
ग़ज़ल
मोहब्बत मा-सिवा की जिस ने की गोरी कलोटी की
यक़ीं कीजो कि काफ़िर हो के अपनी राह खोटी की
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
किसी सूरत नुमूद-ए-सोज़-ए-पिन्हानी नहीं जाती
बुझा जाता है दिल चेहरे की ताबानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
हुआ न क़ुर्ब-ए-तअ'ल्लुक़ का इख़तिसास यहाँ
ये रू-शनास ज़ि-राह-ए-बईदा आया था
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
हुआ है यूँ भी कि झुक झुक के जड़ मोहब्बत की
रफ़ीक़ों ने ज़-रह-ए-इल्तिफ़ात काटी है