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ग़ज़ल
सिर्फ़ ज़ाहिर हो गया सरमाया-ए-ज़ेब-ओ-सफ़ा
क्या तअ'ज्जुब है जो बातिन बा-सफ़ा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हसीनान-ए-चमन पर ख़ात्मा है जामा-ज़ेबी का
फटा पड़ता है जोबन जो ये पैराहन बनाते हैं
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
उस हरम की ज़ेब-ओ-ज़ीनत को ख़ुदा रक्खे मगर
मुजरिमान-ए-अह्द-ओ-पैमान-ए-कलीसा हम भी हैं
एहसान दानिश
ग़ज़ल
गर बादिला सर पर है तो मख़मल है तह-ए-पा
अल-क़िस्सा अजब मंज़र-ए-पुर-जे़ब-ओ-ज़िया है
मुहीउद्दीन फ़ौक़
ग़ज़ल
परी-रुख़ों को ग़रज़ क्या थी ज़ेब-ओ-ज़ीनत से
न होती गर उन्हें अपने नज़ारा-गर की तलब
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ख़ुश-रंग किस क़दर ख़स-ओ-ख़ाशाक थे कभी
ज़र्रे भी ज़ेब-ओ-ज़ीनत-ए-अफ़्लाक थे कभी
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
ज़ेब-ओ-आराइश के सामाँ दिल को बहलाते नहीं
ज़िंदगी में अब कहीं भी प्यार के नाते नहीं
सादिक़ा फ़ातिमी
ग़ज़ल
ज़ेब-ओ-ज़ीनत न कर इतनी कि कहीं ले के फ़ुग़ाँ
कल को दर पर तिरे फूलों की क़तार आ जाए