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ग़ज़ल
न शामिल हो जो आशुफ़्ता-ख़याली ज़ेहन-ए-मोहकम में
वो कुछ भी हो चमन-ज़ार-ए-मुअत्तर हो नहीं सकता
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
अजब शय है 'फ़ज़ा' ज़ेहन ओ नज़र की ये असीरी भी
मुसलसल देखते रहना बराबर सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
'शान' बे-सम्त न कर दे तुम्हें सहरा-ए-हयात
ज़ेहन में उन के नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा रहने दो
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
गुलज़ार-ए-रिवायत से ज़रा ज़ह्न को मोड़ो
जिद्दत के बयाबान में अश्जार बहुत हैं
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
ग़ज़ल
जिन की फ़ितरत ना-शनास-ए-ज़ौक़-ए-मोहकम है 'उरूज'
मैं उन्हें ये कैसे समझाऊँ वफ़ा क्या चीज़ है
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
मता-ए-अज़्म-ए-मोहकम ही का इस को मो'जिज़ा कहिए
कि मंज़िल बन गई ख़ुद रहगुज़र आहिस्ता आहिस्ता
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
रोज़-ओ-शब अपने गुज़र जाना दयार-ए-ग़ैर में
दास्तान-ए-अज़्म-ए-मोहकम के सिवा कुछ भी नहीं