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ग़ज़ल
रात आख़िर हुई और बज़्म हुई ज़ेर-ओ-ज़बर
अब न देखोगे कभी लुत्फ़-ए-शबाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
इश्क़ से पैदा नवा-ए-ज़िंदगी में ज़ेर-ओ-बम
इश्क़ से मिट्टी की तस्वीरों में सोज़-ए-दम-ब-दम
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया
ये ज़मीं बनती गई ये आसमाँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
आशिक़-ए-ज़ुल्फ़ को दो बोसा-ए-ख़त्त-ओ-अब्रू
मुसहफ़-ए-रुख़ पे लिखूँ ज़ेर-ओ-ज़बर आज की रात
नसीम मैसूरी
ग़ज़ल
बात करने में जो लब उस के हुए ज़ेर-ओ-ज़बर
एक साअत में तह-ओ-बाला ज़माना हो गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
इस बेहिस दुनिया के आगे किसी लहर की पेश नहीं जाती
अब बहर का बहर उछाल कोई इसे ज़ेर-ओ-ज़बर करने के लिए
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ
मगर हाँ दिल में कुछ कुछ ज़ेर-ओ-बम महसूस करता हूँ
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
शामिल-ए-अन्फ़ास थे नग़्मात-ए-ऐश-ओ-इंबिसात
ज़िंदगी के साज़ का हर ज़ेर-ओ-बम शाहाना था