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ग़ज़ल
वो ख़ुद हँसाए तो कम-बख़्त दिल ज़िदीले दिल
ये वज़्अ'-दारी है क्यूँ हाए हाए हँस देना
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
रख दिए जाएँगे नेज़े लफ़्ज़ और होंटों के बीच
ज़िल्ल-ए-सुब्हानी के अहकामात जारी हो गए
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
रात भी काली चादर ओढ़े आ पहुँची है ज़ीने में
मेहंदी लगाए बैठी सोचे लट उलझी सुलझाए कौन
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
ज़िद्दी वहशी अल्लहड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग
होंट उन के ग़ज़लों के मिसरे आँखों में अफ़्साने थे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आप बनाता है पहले फिर अपने आप मिटाता है
दुनिया का ख़ालिक़ हम को इक ज़िद्दी बच्चा लगता है
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
मद-होशी में एहसास के ऊँचे ज़ीने से गिर जाने दे
इस वक़्त न मुझ को थाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
जान-ए-'आरिफ़' तू भी ज़िद्दी था अना मुझ में भी थी
दोनों ख़ुद-सर थे झुका तू भी नहीं मैं भी नहीं