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ग़ज़ल
'ताबिश' का क्या कहें कि वो ज़ोहरा-गुदाज़ शख़्स
आतिश-फ़िशाँ का फूल था पानी में खो गया
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
शमीम करहानी
ग़ज़ल
रक़्स इस ज़ोहरा-जबीं का है अदू के घर में
मेहर मीज़ाँ में है अक़रब में क़मर आज की रात
नसीम मैसूरी
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
कोई लाख ज़ोहरा-जबीन है जिसे चाहें हम वो हसीन है
'कलीम' उस सरापा ग़ुरूर को ज़रा आइना तो दिखाए जा
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
उन की भी ब-हर-हाल गुज़र जाती हैं रातें
जो लोग किसी ज़ोहरा-जबीं से नहीं मिलते
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
ग़ज़ल
कभी बे-क़रार हो कर जो मैं साज़-ए-इश्क़ छेड़ूँ
तो ये मुशतरी-ओ-ज़ोहरा कोई गीत फिर न गाएँ
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ये लड़की कमज़ोर सी लड़की मरियम भी है ज़ोहरा भी
राबिया-बसरी बनी तो फिर वलियों से बढ़ गई बेटी