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ग़ज़ल
तुम ग़ैरत-ए-नाहीद हो तुम ज़ोहरा-जबीं हो
तुम को नहीं मालूम कि तुम कितने हसीं हो
तुफ़ैल होशियारपुरी
ग़ज़ल
शमीम करहानी
ग़ज़ल
दिखावे और कोई अपना यार ज़ोहरा-जबीं
जो आसमाँ नहीं उस रश्क-ए-माह की तख़सीस
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
होने को तो दुनिया में हैं कितने ही हसीं और
लेकिन नहीं तुम जैसा कोई ज़ोहरा-जबीं और
अज़ीज़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है
बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
गुल-बदन ज़ोहरा-जबीं तू ही बता दे मुझ को
इस मोहब्बत से तराशा है ये पैकर किस ने