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ग़ज़ल
बुतान-ए-महविश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं
कि जिस की जान जाती है उसी के दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था
वही मील और वही संग-ए-निशाँ है कि जो था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
इल्तिजाएँ करने वाले को दुआ से क्या ग़रज़
जिस को हो तुझ से ग़रज़ उस को ख़ुदा से क्या ग़रज़
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
बड़ी इबरत की मंज़िल है ज़मीं गोर-ए-ग़रीबाँ की
यहाँ अपनी हक़ीक़त पर नज़र पड़ती है इंसाँ की
मोहम्मद अब्बास सफ़ीर
ग़ज़ल
जश्न मनाओ रोने वाले गिर्या भूल के मस्त रहें
सारंगी के तीर समाअ'त में इमशब पैवस्त रहें
अहमद जहाँगीर
ग़ज़ल
एक ही ख़त में है क्या हाल जो मज़कूर नहीं
दिल तो दिल इश्क़ में सादा वरक़-ए-तूर नहीं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम' महफ़िल में
वही यूसुफ़ है ज़िंदाँ में वही लैला है महमिल में