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ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ों की तो फ़ितरत ही है लेकिन मिरे प्यारे
ज़ुल्फ़ों से ज़ियादा तुम्हीं बल खाए चलो हो
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
बारहा ख़्वाब में पा कर मुझे प्यासा 'मोहसिन'
उस की ज़ुल्फ़ों ने किया रक़्स घटाओं जैसा
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
क्या क्या उलझता है तिरी ज़ुल्फ़ों के तार से
बख़िया-तलब है सीना-ए-सद-चाक शाना क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तब मैं ने अपने दिल में लाखों ख़याल बाँधे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से ख़ुशबू की भीक लेने को
झुकी झुकी सी घटाएँ बुला रही हैं तुम्हें