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ग़ज़ल
बोसा देते हो अगर तुम मुझ को दो दो सब के दो
जीभ के दो सिर के दो रुख़्सार के दो सब के दो
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
जिन की जीभ के कुंडल में था नीश-ए-अक़रब का पैवंद
लिक्खा है उन बद-सुखनों की क़ौम पे अज़दर बरसे थे
मजीद अमजद
ग़ज़ल
गोया इस सोच में है दिल में लहू भर के गुलाब
दामन ओ जेब को गुलनार करूँ या न करूँ