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ग़ज़ल
शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
शैख़ करता तो है मस्जिद में ख़ुदा को सज्दे
उस के सज्दों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं
ख़ामोश ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
क्या जानिए ये क्या खोएगा क्या जानिए ये क्या पाएगा
मंदिर का पुजारी जागता है मस्जिद का नमाज़ी सोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
हाज़िर हैं कलीसा में कबाब ओ मय-ए-गुलगूँ
मस्जिद में धरा क्या है ब-जुज़ मौइज़ा ओ पंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले
इक उस को पाने के लिए क्या क्या किया क्या क्या हुआ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
उस की गली से मक़्तल-ए-जाँ तक मस्जिद से मय-ख़ाने तक
उलझन प्यास ख़लिश तन्हाई कर्ब-ज़दा लम्हात के नाम