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ग़ज़ल
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
गर्म आँसू और ठंडी आहें मन में क्या क्या मौसम हैं
इस बगिया के भेद न खोलो सैर करो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
किस की नुमूद के लिए शाम ओ सहर हैं गर्म-ए-सैर
शाना-ए-रोज़गार पर बार-ए-गिराँ है तू कि मैं