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ग़ज़ल
बाँधा है बर्ग-ए-ताक का क्यूँ सर पे सेहरा
किया 'आबरू' का ब्याह है बिंत-उल-एनब सेती
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
हम न इस टोली में थे यारो न उस टोली में थे
ने किसी की जेब में थे न किसी झोली में थे
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
कब तुम भटके क्यूँ तुम भटके किस किस को समझाओगे
इतनी दूर तो आ पहुँचे हो और कहाँ तक जाओगे
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
मोहब्बत में वफ़ा वालों को कब ईज़ा सताती है
ये वो हैं जिन को सूली पर भी चढ़ कर नींद आती है
रिफ़अत सेठी
ग़ज़ल
सीने में सुलगते हैं अरमाँ आँखों में उदासी छाई है
ये आज तिरी दुनिया से हमें तक़दीर कहाँ ले आई है