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ग़ज़ल
इलाही बारिश-ए-अब्र-ए-करम हो फ़स्ल दूनी हो
कि 'बाक़र' की तो आमद बस इसी दिल की ज़मीं तक है
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना
वो अदब-गह-ए-मोहब्बत वो निगह का ताज़ियाना
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त