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ग़ज़ल
कल जो रुख़ फेर लिया करते थे मुझ से 'अख़्तर'
आज वो भी मिरे हालात पे रो देते हैं
अख़्तर ग्वालियारी
ग़ज़ल
नज़र उठाना इधर न 'अफ़सर' बुरा है ये डॉलरों का चक्कर
उधर उधर हो गई सफ़ाई जिधर जिधर उस ने हाथ फेरा
अफ़सर आज़री
ग़ज़ल
ज़िक्र मिरा और तेरे लब पर याद मिरी और तेरे दिल में
झूटी आस दिलाने वाले आग न भड़का मेरे दिल में
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
ऐ दर्द-ए-इश्क़ तुझ से मुकरने लगा हूँ मैं
मुझ को संभाल हद से गुज़रने लगा हूँ मैं