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ग़ज़ल
अगर सोने के पिंजड़े में भी रहता है तो क़ैदी है
परिंदा तो वही होता है जो आज़ाद रहता है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
उड़ चला वो इक जुदा ख़ाका लिए सर में अकेला
सुब्ह का पहला परिंदा आसमाँ भर में अकेला