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ग़ज़ल
जब दिल में तिरे ग़म ने हसरत की बिना डाली
दुनिया मिरी राहत की क़िस्मत ने मिटा डाली
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
फ़िराक़-मौसम के आसमाँ में उजाड़ तारे जुड़े हुए हैं
नदी के दामन में हंसराजों के सर्द लाशे गिरे हुए हैं
सीमाब ज़फ़र
ग़ज़ल
वही आहटें दर-ओ-बाम पर वही रत-जगों के अज़ाब हैं
वही अध-बुझी मिरी नींद है वही अध-जले मिरे ख़्वाब हैं
तारिक़ बट
ग़ज़ल
क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो
ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो