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ग़ज़ल
याद के फेर में आ कर दिल पर ऐसी कारी चोट लगी
दुख में सुख है सुख में दुख है भेद ये न्यारा भूल गया
मीराजी
ग़ज़ल
ये सजा-सजाया घर साथी मिरी ज़ात नहीं मिरा हाल नहीं
ऐ काश कभी तुम जान सको जो इस सुख ने आज़ार दिया
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
प्यारों से मिल जाएँ प्यारे अनहोनी कब होनी होगी
काँटे फूल बनेंगे कैसे कब सुख सेज बिछौना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
न कोई ख़ुशी न मलाल है कि सभी का एक सा हाल है
तिरे सुख के दिन भी गुज़र गए मिरी ग़म की रात भी कट गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
आँखों देखी क्या बतलाएँ हाल अजब कुछ देखा है
दुख की खेती कितनी हरी और सुख का जैसे काल कहो