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ग़ज़ल
सजा कर लख़्त-ए-दिल से कश्ती-ए-चश्म-ए-तमन्ना को
चला हूँ बारगाह-ए-इश्क़ में ले कर ये नज़राना
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
'अदम' ख़राबात की सहर है कि बारगाह-ए-रुमूज़-ए-हस्ती
इधर भी सूरज निकल रहा है उधर भी सूरज निकल रहा है
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
इश्क़ की सादा-दिली है हर तरफ़ छाई हुई
बारगाह-ए-हुस्न में हर आरज़ू नौ-ख़ेज़ है
अकबर हैदरी कश्मीरी
ग़ज़ल
मेरी आदत है वफ़ा दिल में शकेबाई है
बात यूँ बारगह-ए-नाज़ में बन आई है