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ग़ज़ल
मैं सर-ब-सज्दा हूँ ऐ 'शिम्र' मुझ को क़त्ल भी कर
रिहाई दे भी अब इस अहद-ए-कर्बला से मुझे
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
न हर्फ़-ए-हक़, न वो मंसूर की ज़बाँ, न वो दार
न कर्बला, न वो कटते सरों के नज़राने
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
मौज-ए-दरिया के लबों पर तिश्नगी है कर्बला
रेग-ए-साहिल पर तड़पती ज़िंदगी है कर्बला