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ग़ज़ल
कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या
जहान-ए-रिज़्क़ में तौक़ीर-ए-अहल-ए-हाजत क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
सर-बरहना हूँ तो क्या ग़म है कि अब शहर में लोग
बरगुज़ीदा हुए दस्तार-ए-फ़ज़ीलत के बग़ैर
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
फ़ज़ीलत है ये इंसाँ की वहाँ तक जा पहुँचता है
फ़रिश्ते क्या फ़रिश्तों के जहाँ साए नहीं जाते
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
नज़र मुद्दत से थी ऐ शैख़ जिस पर मय-फरोशों की
वो दस्तार-ए-फ़ज़ीलत रेहन हम ने मेहरबाँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
सर पे मेरे भी थी दस्तार-ए-फ़ज़ीलत लेकिन
मुझ को हासिल थी मिरे रब की मइय्यत लेकिन