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ग़ज़ल
कभी रौशनी की तलब रही कभी हौसलों की कमी रही
मैं चराग़ को तिरे नाम के न जला सका न बुझा सका
हिलाल फ़रीद
ग़ज़ल
तीरगी की अपनी ज़िद है जुगनुओं की अपनी ज़िद
ठोकरों की अपनी ज़िद है हौसलों की अपनी ज़िद
प्रबुद्ध सौरभ
ग़ज़ल
हौसलों के साथ तय कर राह-ए-दुश्वार-ए-हयात
हल तो होंगी मुश्किलें लेकिन ब-आसानी नहीं