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नज़्म
तिरी फ़ितरत अमीं है मुम्किनात-ए-ज़िंदगानी की
जहाँ के जौहर-ए-मुज़्मर का गोया इम्तिहाँ तो है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़त्म हो जाएगा लेकिन इम्तिहाँ का दौर भी
हैं पस-ए-नौह पर्दा-ए-गर्दूं अभी दौर और भी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चमन को छोड़ के निकला हूँ मिस्ल-ए-निकहत-ए-गुल
हुआ है सब्र का मंज़ूर इम्तिहाँ मुझ को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब उस के वास्ते ख़ुद को न यूँ तबाह करो
अब इम्तिहाँ की तमन्ना से फ़ाएदा क्या है
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
इम्तिहान-ए-दीदा-ए-ज़ाहिर में कोहिस्ताँ है तू
पासबाँ अपना है तू दीवार-ए-हिन्दुस्ताँ है तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कहाँ हो मतवालो आओ बज़्म-ए-वतन में है इम्तिहाँ हमारा
ज़बान की ज़िंदगी से वाबस्ता आज सूद ओ ज़ियाँ हमारा
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
है इम्तिहाँ सर पर खड़ा मेहनत करो मेहनत करो
बाँधो कमर बैठे हो क्या मेहनत करो मेहनत करो
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
नज़्म
फिर दिल को पास-ए-ज़ब्त की तल्क़ीन कर चुकें
और इम्तिहान-ए-ज़ब्त से फिर जी चुराईं हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इम्तिहाँ में हल न हो जिस दम कोई मुश्किल सवाल
ख़ुद पसंदों को पता चलता है तब उस्ताद का
फ़ैज़ लुधियानवी
नज़्म
इम्तिहाँ सर पर है लड़के लड़कियाँ हैं और किताब
डेट-शीट आई तो गोया आ गया यौम-उल-हिसाब
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
हुई फिर इमतिहान-ए-इशक़ की तदबीर बिस्मिल्लाह
हर इक जानिब मचा कुहराम-ए-दार-ओ-गीर बिस्मिल्लाह