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नज़्म
ज़मीं से आसमाँ तक सर्दियों का फ़ैज़ जारी है
कि इन ख़ामोश रातों में मुसलसल बर्फ़-बारी है
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
जीवन तो बहता दरिया है सुख दुख इस की मौजें
हम तुम दोनों मिल कर अपनी प्यार की मंज़िल खोजें
महमूद ज़की
नज़्म
वो अब्र-ए-मोहब्बत की दिलकश घटाएँ
'ज़की' अब कहाँ अहद-ए-रंगीं वो पाएँ
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
आसमाँ से शो'ले गिरते थे झुलसती थी ज़मीं
गर्मी-ए-रोज़-ए-क़यामत का नमूना आश्कार
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
दिए चारों तरफ़ हर जा फ़रोज़ाँ देखता हूँ मैं
नज़र पड़ती है जिस पर भी दरख़्शाँ देखता हूँ मैं
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आह लेकिन कौन जाने कौन समझे जी का हाल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ