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नज़्म
ऐ 'हफ़ीज़' इन नींद के मातों की मंज़िल से निकल
काम है दरपेश दाम-ए-दीदा-ओ-दिल से निकल
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
इल्म से रहती है पाबंद-ए-शिकन जिस की जबीं
नाज़ से शानों पर उस की ज़ुल्फ़ लहराती नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
था यहाँ तक हम पे जौर-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-बुलंद
मोतियों के बदले हम को कंकर आते थे पसंद
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
अभी तो हुस्न के पैरों पे है जब्र-ए-हिना-बंदी
अभी है इश्क़ पर आईन-ए-फ़र्सूदा की पाबंदी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इस चमन की सरज़मीं है रू-कश-ए-हफ़्त-आसमाँ
इस चमन में ताइर-ए-अर्श-आशियाँ पैदा हुआ