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नज़्म
ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मेरे कान में ये नवा-ए-हज़ीं यूँ थी जैसे
किसी डूबते शख़्स को ज़ेर-ऐ-गिर्दाब कोई पुकारे!
नून मीम राशिद
नज़्म
तअ'ज़ीम जिस की करते हैं तो अब और ख़ाँ
मुफ़्लिस हुए तो हज़रत-ए-लुक़्माँ किया है याँ
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
निगाहें बिछ रही हैं रास्ता ज़र-कार है अब भी
मगर जान-ए-हज़ीं सदमे सहेगी आख़िरश कब तक