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नज़्म
जिस में शिरकत के लिए बे-ताब है सारा जहाँ
जश्न-ए-उर्दू का भी मीर-ए-कारवाँ संजीव है
अज़हर बख़्श अज़हर
नज़्म
हो गए अक़्ल-ओ-ख़िरद नज़्र-ए-जुनूँ तेरे बग़ैर
दिल है और आठों-पहर इक वहशत-ए-बे-इख़्तियार
जौहर निज़ामी
नज़्म
फिर शबिस्तान-ए-तरब की राह दिखलाता है तू
मुझ को करना चाहता है फिर ख़राब-ए-रंग-ओ-बू
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
है मिरी जुरअत से मुश्त-ए-ख़ाक में ज़ौक़-ए-नुमू
मेरे फ़ित्ने जामा-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद का तार-ओ-पू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बताऊँ क्या जो रंग-ए-गर्दिश-ए-अय्याम है साक़ी
जहाँ का ज़र्रा-ज़र्रा कुश्ता-ए-आलाम है साक़ी
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
सुन ले मिरे 'नदीम' सुन 'इक़बाल' के था दर्द-ए-लब
इश्क़-ए-तमाम-ए-मुस्तफ़ा अक़्ल-ए-तमाम बू-लहब