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नज़्म
क्या जाने उस ज़रीफ़ के क्या दिल में आई थी
कर्फ़्यू में जिस ने महफ़िल-ए-शेरी सजाई थी
खालिद इरफ़ान
नज़्म
ख़ाका-ए-दस्तूर-ए-क़ौमी या'नी वो शे'री रिपोर्ट
'अम्न'-साहब ने रक़म की थी ब-सिंफ़-ए-मसनवी
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है
सुना है शेर का जब पेट भर जाए तो वो हमला नहीं करता
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
अजब है ये ज़बाँ, उर्दू
कभी कहीं सफ़र करते अगर कोई मुसाफ़िर शेर पढ़ दे 'मीर', 'ग़ालिब' का
गुलज़ार
नज़्म
मिरा हर शेर तन्हाई में उस ने गुनगुनाया है
सुनी हैं मैं ने अक्सर छुप के नग़्मा-ख़्वानियाँ उस की