Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

एक शाएरा की शादी पर

अख़्तर शीरानी

एक शाएरा की शादी पर

अख़्तर शीरानी

MORE BYअख़्तर शीरानी

    रोचक तथ्य

    One who claimed she has,'come to the world only to lead the life of a poet'

    कि था उन्स तुझे इश्क़ के अफ़्सानों से

    ज़िंदगानी तिरी आबाद थी रूमानों से

    शेर की गोद में पलती थी जवानी तेरी

    तेरे शेरों से उबलती थी जवानी तेरी

    रश्क-ए-फ़िरदौस था हर हुस्न भरा ख़्वाब तिरा

    एक पामाल खिलौना था ये महताब तिरा

    निकहत-ए-शेर से महकी हुई रहती थी सदा

    नश्शा-ए-फ़िक्र में बहकी हुई रहती थी सदा

    शिरकत-ए-ग़ैर से बेगाना थे नग़्मे तेरे

    इस्मत-ए-हूर का अफ़्साना थे नग़्मे तेरे

    शेर की ख़ल्वत-ए-रंगीं थी परी-ख़ाना तिरा

    मस्त ख़्वाबों के जज़ीरों में था काशाना तिरा

    ग़ाएब-अज़-चश्म थी जन्नत की बहारों की तरह

    दस्त-ए-इंसाँ से थी महफ़ूज़ सितारों की तरह

    सोहबत-ए-ग़ैर से घबराती थी तन्हाई तिरी

    आईने से भी तो शरमाती थी तन्हाई तिरी

    सुब्ह की तरह से दोशीज़ा थी हस्ती तेरी

    बू-ए-गुल की तरह पाकीज़ा थी हस्ती तेरी

    नग़्मा-ओ-शेर के फ़िरदौस में तू रहती थी

    यकसर इल्हाम तरन्नुम था जो तू कहती थी

    तेरे अशआर थे जन्नत की बहारों के हुजूम

    तेरे अफ़्कार थे ज़र्रीन सितारों के हुजूम

    दर्द-ए-शेरी के तअस्सुर से तो मग़्मूम थी तू

    आसमाँ का मगर इक गुंचा-ए-मासूम थी तू

    मौज-ए-कौसर का छलकता हुआ पैमाना थी

    ग़ैर होंटों के तसव्वुर से भी बेगाना थी

    अब गवारा हुई क्यूँ ग़ैर की सोहबत तुझ को

    क्यूँ पसंद गई ना-जिंस की शिरकत तुझ को

    औज-ए-तक़्दीस को पस्ती की अदा भा गई क्यूँ

    तेरी तन्हाई की जन्नत पे ख़िज़ाँ छा गई क्यूँ

    शेर रूमान के वो ख़्वाब कहाँ हैं तेरे

    वो नुक़ूश-ए-गुल-ओ-महताब कहाँ हैं तेरे

    कौन सी तुर्फ़ा अदा भा गई इस दुनिया में

    ख़ुल्द को छोड़ के क्यूँ गई इस दुनिया में

    हो गई आम तू नूर-ए-मह-ए-ताबाँ की तरह

    आह क्यूँ जल बुझी शम-ए-शबिस्ताँ की तरह

    अपनी दोशीज़ा बहारों को खोना था कभी

    वो कली थी तू जिसे फूल होना था कभी

    इफ़्फ़तें मिट के जवानी को मिटा जाती हैं

    फूल कुम्हलाते हैं कलियाँ कहीं कुम्हलाती हैं

    बुलबुल-ए-मस्त-नवा दश्त में क्यूँ रहने लगी

    नग़्म-ए-तर की जगह मर्सिया क्यूँ कहने लगी

    हवस-आलूदा हुई पाक जवानी तेरी

    ग़ैर की रात है अब और कहानी तेरी

    किस को मालूम था तू इस क़दर अर्ज़ां होगी

    ज़ीनत-ए-महफ़िल पामाल-ए-शबिस्ताँ होगी

    जज़्ब-ए-इफ़्फ़त का मयस्सर था जो इरफ़ाँ तुझ को

    क्यूँ मर्ग़ूब हुआ शेवा-ए-जानाँ तुझ को

    तीरगी हिर्स की हूरों को भी बहका ही गई

    तेरे बिस्तर पे भी आख़िर को शिकन ही गई

    अब नहीं तुझ में वो हूरों की सी इफ़्फ़त बाक़ी

    हूर थी तुझ में, गई, रह गई औरत बाक़ी

    हाँ वो औरत जिसे बच्चों का फ़साना कहिए

    बरबत-ए-नफ़्स का इक फ़ुहश तराना कहिए

    जिस में है ज़हर उफ़ूनत का वो पैमाना कहें

    इक गुनाहों का भभकता हुआ मय-ख़ाना कहें

    नौहा-ख़्वाँ अपनी जवाँ मौत का होने दे मुझे

    मुस्कुरा तू मगर इस हाल पे रोने दे मुझे

    स्रोत:

    kulliyat-e-akhtar shirani (Pg. 105)

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए